Jharkhand political crisis Highlights
झारखंड में सियासी संकट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है, पिछले कुछ दिनों से सरकार लगातार अपने विधायकों को टूर कराने में व्यस्त है, कभी नौका विहार तो कभी छत्तीसगढ़ के पांचसितारा रिसोर्ट में लेक भ्रमण. अपनी सदस्यता मामले में राजभवन की चुप्पी से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन परेशान हैं वहीं मुख्यमंत्री के मन में उपजे डर से विधायक परेशान हैं. रांची टू रायपुर और रायपुर टू रांची डोलते ये विधायक अब इस भागमभाग से तंग आ चुके हैं, कुछ विधायकों का तो कहना ये भी है कि एक सप्ताह से हमलोग यहां-वहां डोल रहे हैं इससे अच्छा होता कि कोई निर्णय हो जाता। कम से कम मुंह छिपाकर तो नहीं रहना पड़ता, विरोधी क्षेत्र में माहौल बना रहे हैं कि हमलोग मौज कर रहे हैं, ऐसा कुछ दिन और चला तो परेशानी बहुत बढ़ जाएगी, कुछ विधायकों का तो ये भी कहना है कि मुख्यमंत्री का इस तरह से सबको बिकाऊ समझकर एक तराजू में तौलना ठीक नहीं है और अगर भरोसे की इतनी ही कमी है तो फिर गठबंधन में साथ चलने का क्या फायदा?
Why is Jharkhand political crisis
1951 का
अधिनियम संसद या राज्य विधानसभाओं में चुनाव के संचालन और सदस्यता के लिए योग्यता
और अयोग्यता के नियमों को निर्धारित करता है. धारा 9 (ए) में प्रावधान है कि एक
सरकारी प्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए यदि उस सरकार द्वारा किए गए
किसी भी कार्य के निष्पादन के लिए सरकार के साथ अनुबंध करता है.
राज्यपाल ने तब भाजपा की शिकायत को भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को उसकी राय के लिए भेजा, जैसा कि कानून द्वारा आवश्यक है, उसके बाद 25 अगस्त को, ईसीआई ने राज्यपाल को एक सीलबंद लिफाफे में अपना निर्णय पेश किया इस फैसले में यदि राज्यपाल हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराते हैं, तो वह बिना विधायक बने छह महीने तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में रह सकते हैं। इस दौरान वे फिर से चुनाव जीतकर बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल भी पूरा कर सकते हैं
आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में एक तरफ सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की होड़ है दूसरी तरफ हॉर्स ट्रेडिंग रूपी साँप के काटने का डर पर इस साँप सीढ़ी के खेल में हेमंत अपनी हर गोटी काफी सोच समझकर चल रहे हैं, चाहे वो अपने विधायकों को रायपुर भेजने का विषय हो या आनन फानन में कैबिनेट मीटिंग बुलाकर लंबे समय से लंबित प्रस्तावों को एकाएक मंजूरी देना हो या फिर एक दिन का विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर बिना किसी कारण के विश्वासमत हासिल करना हो पर यहाँ बड़ा सवाल ये है कि क्या ऐसे लोकलुभावन घोषणाएँ कर हेमंत अपनी सरकार बचा लेंगे और उससे भी बड़ा सवाल कि अगर हेमंत सरकार को ऐसा लगता है कि पूरी खरीदारों की मंडी उनके विधायकों को खरीदने के लिए झारखंड आकर बैठ गयी है तो वे इसपर कोई बड़ा एक्शन क्यूँ नहीं लेते और ये पहली बार नहीं हुआ है, कुछ समय पहले भी हेमंत सरकार गिराने की साजिश रची गयी, मामला सामने आया, जाँच बैठाई गई खूब हो हंगामा हुआ पर परिणाम सिर्फ शून्य रहा, ये एक ऐसा सवाल है जो लगभग हर झारखंडी की जुबान पर है कि आखिर हेमंत सोरेन खरीदार की मंडी को सजने ही क्यूँ देते हैं, आखिर कौन सी मजबूरी है जो उन्हें यहाँ मौन कर जाती है?
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