5000 साल पुराना है सेंगोल (sengol) का इतिहास
भारत की नई संसद 'सेंट्रल विस्टा' एक खास वजह से चर्चा में है और चर्चा की वजह है- सेंगोल। यह सनातन संस्कृति में राजदंड का प्रतीक है, जिसे "शिंगोले" या सेंगोल कहते हैं। नए संसद भवन में यह प्रयागराज के संग्रहालय से निकलकर लोकसभा अध्यक्ष के आसन के समीप लगाया जाना है। क्या है सेंगोल का इतिहास आइए समझते हैं:-
सेंगोल (sengol) का आधुनिक इतिहास
सेंगोल प्राचीन काल से राजदंड के तौर पर जाना जाता रहा है. यह राजदंड सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने और प्रजा के लिए राज्य के प्रति समर्पित रहने के वचन का स्थिर प्रतीक भी रहा है जिस सेंगोल की स्थापना नई संसद में की जा रही है, उसका आधुनिक इतिहास भारत की आजादी के साथ जुड़ा हुआ सामने आया है, जब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल सौंपा गया हुआ यूँ कि जब अंग्रेजों ने भारत की आजादी का एलान किया था तो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल का इस्तेमाल किया था। लॉर्ड माउंटबेटन ने 1947 में सत्ता के हस्तांतरण को लेकर नेहरू से सवाल पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए। इसके बाद नेहरू ने सी राजा गोपालचारी से राय ली। उन्होंने सेंगोल के बारे में जवाहर लाल नेहरू को जानकारी दी। इसके बाद सेंगोल को तमिलनाडु से मंगाया गया और 'राजदंड' सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। वहीं प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल के सूत्र चोल राज शासन से जुड़ते हैं, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था. यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण होता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश भी
न्यायसम्मत दंड का प्रतीक है सेंगोल (sengol)
तमिल में इसे सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है। सेंगोल संस्कृत शब्द 'संकु' से लिया गया है, जिसका मतलब शंख है। सनातन धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। मंदिरों और घरों में आरती के दौरान शंख का इस्तेमाल आज भी किया जाता है। सेंगोल को और खंगालें तो कई अलग-अलग रिपोर्ट में इसकी उत्पत्ति तमिल शब्द 'सेम्मई' से बताई गई है. सेम्मई का अर्थ है 'नीतिपरायणता', यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा. यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था. ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु के नए शासक को औपचारिक तोर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे.
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