Karnataka Election Results : कैसे हुआ नीतीश कुमार के सपनों का बंटाधार | कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023

Karnataka Election Result 2023

यह नीतीश कुमार के साथ क्या हो गया?

एक मशहूर कहावत है कि "चौबे चले थे छब्बे बनने, दुबे बनकर आ गये" यह कहावत कर्नाटक चुनाव की जीत के बाद नीतीश कुमार पर इस कदर फिट बैठेगी, इसका अंदाज़ा शायद नीतीश कुमार को भी नहीं होगा. कर्नाटक कांग्रेस के कार्यालयों में जीत का जश्न- कहीं पटाखे तो कहीं मिठाइयाँ पर इन सबके बीच एक शख्स परेशान सा खड़ा है क्यूंकि उसके सपनों का शीश महल उसकी आँखों के सामने गिरता जा रहा है, यह शख्स कोई और नहीं बल्कि नीतीश कुमार हैं जिनके आँखों ने अभी कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा था 

नीतीश कुमार


राहुल गाँधी और नीतीश कुमार:- क्या हैं इनके राजनीतिक समीकरण 

गौरतलब है कि जैसे ही गुजरात की एक अदालत ने राहुल गाँधी को दो साल की सजा सुनाई और सजा का एलान होते ही उनकी लोकसभा कि सदस्यता चली गई वैसे ही हर आपदा में अवसर तलाशने वाले नीतीश कुमार जूट गये अपनी महत्वाकांक्षाओं के जहाज़ को एक नई उड़ान देने में. यह वो अवसर था जब उन्हें लगा कि यदि वो विपक्षी एकता की सफल पटकथा लिखने में कामयाब हो गये तो कमजोर पड़ती कांग्रेस उन्हें वो अवसर दे सकती है जिसकी उन्हें तलाश है, फिर क्या था मुलाकातों और बैठकों का सिलसिला शुरू हो गयी और नीतीश कुमार ने इसकी नींव रखी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ मुलाकात करके, कांग्रेस ने भी कर्नाटक चुनाव के मद्देनज़र इस  दौरान चुप्पी साध कर एक तरह से नीतीश कुमार को खुली छुट दे रखी थी कि वे अलग थलग पड़े विपक्षी दलों को एक धागे में पिरोना शुरू करें पर इन सब के पीछे नीतीश कुमार के नजरिये से कर्नाटक चुनाव की एक अहम् भूमिका थी क्यूंकि कांग्रेस तभी नीतीश कुमार के पीछे चलने को तैयार होती जब वो कर्नाटक चुनाव हारकर और भी ज्यादा कमजोर हो जाती पर इस चुनाव में न सिर्फ कांग्रेस की जीत बल्कि पूर्ण बहुमत के साथ विस्फोटक जीत ने नीतीश कुमार के सपनों पर एकबार फिर से पानी फेर दिया 

कांग्रेस और नीतीश कुमार 

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो कांग्रेस कभी भी राष्ट्रीय चुनाव में किसी अन्य दल के व्यक्ति को नेता मानने से परहेज़ करती आई है पर लगातार हार का दंश झेल रही कांग्रेस पुनर्विचार का मन बना सकती थी यदि वो कर्नाटक चुनाव हार जाती. निश्चित रूप से यह जीत कांग्रेस के साथ साथ अन्य विपक्षी दलों के लिए लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कुछ संभावनाएँ जगा सकती हैं पर इतना तो तय है कि इस जीत ने नीतीश कुमार के विपक्षी दलों के नेता या प्रधानमंत्री का चेहरा बन जाने की संभावनाओं पर पानी फेर दिया, शायद इसीलिए ही राजनीति के जानकार राजनीति को क्रिकेट के खेल की तरह अनिश्चितताओं का खेल बताते हैं क्यूंकि यहाँ कब बाज़ी किसी तरफ पलट जाए कुछ कहा नहीं जा सकता 

खैर, अब देखना होगा कि कर्नाटक चुनाव की जीत के साथ आत्मविश्वास से लबरेज़ कांग्रेस विपक्षी एकता पर किस रणनीति के साथ आगे बढ़ती है और नीतीश कुमार इस बदले हुए समीकरण में खुद को किस भूमिका में देखना चाहेंगे पर इतना तो तय है कि अब नीतीश कुमार उस भूमिका में शायद कभी नहीं दिखेंगे जिसके साथ उन्होंने विपक्षी एकता अभियान की शुरुआत की थी  

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